Breaking Posts

6/trending/recent
Type Here to Get Search Results !

सीताराम जिंदल को प्राकृतिक चिकित्सा और लोकोपकारी कार्यों में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया गया






पटना , (संवाददाता) : परोपकार एवं स्वास्थ्यसेवा के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम, डॉ. सीताराम जिंदल, को प्रतिष्ठित पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। इस खबर से पूरे भारत में खुशी की लहर फैल गई है। यह सम्मान उन्हें अभूतपूर्व परोपकारी कार्यों के लिए दिया गया है, खासकर प्राकृतिक चिकित्सा (नेचरक्योर) के क्षेत्र में। दवारहित चिकित्सा में डॉ. जिंदल का योगदान और जिंदल नेचरक्योर इंस्टीट्यूट (जेएनआई) की स्थापना ने उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान दिलाया है।1932 में हरियाणा के नालवा गांव में जन्मे डॉ. जिंदल का प्राकृतिक चिकित्सा का कार्य विश्वविद्यालय के दिनों से ही शुरू हो गया था, जब उन्हें पेट की टीबी से जूझना पड़ा था। ऐसा लग रहा था उनकी समस्या का कोई इलाज नहीं है, फिर उन्होंने एक छोटे-से प्राकृतिक चिकित्सा क्लीनिक में शरण ली। उपवास रखने, एनीमा और दूसरे अपारंपरिक तरीकों से उन्हें आराम महसूस होने लगा। इस बदलावकारी अनुभव की वजह से प्राकृतिक चिकित्सा और योग पर उनका गहरा विश्वास हो गया।एक व्यापक नैचुरोपैथी और योग अस्पताल खोलने की सोच से प्रेरित होकर डॉ. जिंदल ने साल 1977-79 में बेंगलुरू के बाहरी इलाके में एक बड़ी जमीन खरीदी। यहां से जेएनआई की नींव पड़ी, जोकि अनुसंधान विंग से परिपूर्ण था। इसे जिंदल एल्युमिनियम लिमिटेड (जेएएल) से काफी ज्यादा आर्थिक सहायता मिलती थी। इससे डॉ.जिंदल की प्राकृतिक चिकित्सा को एक नई ऊंचाइयों तक ले जाने की प्रतिबद्धता झलकती है। उस समय प्रचलित पारंपरिक प्राकृतिक चिकित्सा से उलट, डॉ. जिंदल ने इस विज्ञान को आधुनिक तथा नया बनाने के मिशन की शुरूआत की। पुरानी रूढ़ियों में बंधे प्राकृतिक चिकित्सा के तौर-तरीकों में उत्साह तथा विकास की कमी को पहचानते हुए, वे दवारहित थैरेपीज को ऊपर उठाने और आगे बढ़ाने में जुट गए। 1969 में स्थापित एसजे फाउंडेशन उनके परोपकारी अभियानों के लिए एक आर्थिक स्तंभ बन गया। बिना किसी सरकारी या व्यक्तिगत सहयोग के यह पूरी तरह से जेएएल के योगदान पर निर्भर हो गया।डॉ. जिंदल के अथक प्रयासों ने दवारहित तरीके से स्वस्थ होने के क्षेत्र पर काफी गहरा प्रभाव डाला है। वे जेएनआई को अस्थमा, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, आर्थराइटिस और कैंसर के कई प्रकारों सहित विभिन्न बीमारियों के उपचार में विशेषज्ञता हासिल करने वाली एक विश्व-स्तरीय फैसिलिटी के तौर पर स्थापित कर रहे हैं। 550 बिस्तरों वाला यह संस्थान उन लोगों के लिए आशा की किरण बन गया है जोकि अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए दवा-रहित विकल्पों की तलाश कर रहे हैं। जेएनआई के साथ-साथ डॉ. जिंदल ने कई सारे परोपकारी कार्यों को पूरा किया है, जोकि सामाजिक उत्थान के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। इसके अंतर्गत एलोपैथी अस्पतालों, स्कूलों और कॉलेजों का निर्माण, गांवों के विकास से जुड़ी पहल, स्वास्थ्यसेवा एवं शिक्षा के लिए गांवों को गोद लेना और स्वास्थ्यसेवा तथा शिक्षा के क्षेत्र में लगातार काम कर रहे विभिन्न एनजीओ को सहायता पहुंचाना शामिल है।डॉ. जिंदल के लोकोपकारी प्रयास, प्राकृतिक चिकित्सा से भी कहीं आगे है, जिसमें अपने पैतृक गांव नालवा में आठ चैरिटेबल इकाईयों का निर्माण शामिल है। इससे आस-पास के इलाकों के काफी सारे लोगों को लाभ मिल रहा है। गरीब विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति के माध्यम से सहयोग देना और स्वास्थ्यसेवा तथा शिक्षा के क्षेत्र में सेवारत एनजीओ को आर्थिक मदद पहुंचाना, सामाजिक कार्यों के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। डॉ. जिंदल के कार्यों का प्रभाव जेएनआई की चारदीवारी से बाहर भी है। नैचुरोपैथी तथा योग पर जोर देने वाले, स्वास्थ्य को लेकर उनके व्यापक तरीके ने दुनियाभर में लाखों लोगों की जिंदगियों को बदल दिया। सुरक्षात्मक देखभाल और दवाओं के साइड इफेक्ट के बारे में जानकारी देने की उनकी प्रतिबद्धता, प्राकृतिक चिकित्सका पर उनकी आस्था के अनुरूप है। जिसमें उनका मानना है कि प्राकृतिक चिकित्सा एलोपैथिक अस्पतालों से बोझ को काफी कम कर सकती है। अपने इस पूरे सफर में, डॉ. जिंदल, स्वास्थ्य समस्याओं के लिए काफी सारे नवाचार और थैरेपीज लेकर आए। पेट के सामान्य पैक से लेकर हर्बल टी, स्पाइनल बाथ टब और ठंडा तथा गर्म रिफ्लेक्सोलॉजी ट्रैक, जैसे उनके योगदान ने प्राकृतिक उपचार के खजाने को और भरने का काम किया। अपने दूरदर्शी नेतृत्व व अनेक योगदान के लिए, डॉ. जिंदल को अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, आई.के. गुजराल, एच.डी देवे गौड़ा जैसे प्रधानमंत्रियों सहित, उपप्रधानमंत्री देवी लाल और कर्नाटक के पूर्व उपमुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े जैसी जानी-मानी हस्तियों की ओर से तारीफें मिली हैं। समाज की भलाई के लिए डॉ. जिंदल के अथक प्रयास, स्वास्थ्यसेवा से परे है। वे कॉर्पारेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के पुरजोर समर्थक रहे हैं। वे उद्योगपतियों से गुजारिश करते आए हैं कि गरीबी मिटाने के लिए अपने फायदे का एक हिस्सा खर्च करें। सीएसआर के अनिवार्य प्रतिशत को बढ़ाने के लिए सरकार से उनका मौजूदा संघर्ष, सामाजिक कल्याण के प्रति उनके अटूट संकल्प को दर्शाता है।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Ads Bottom