पटना (संवाददाता) : चिकित्सकों को धरती का भगवान कहा जाता है। वे अपनी चिकित्सीय कला की बदौलत लोगों के जीवन को खुशियों से भर देते हैं। उनकी वजह से हीं कई माताओं की सूनी गोदों में बच्चों की किलकारियाँ गूंज उठती है। पटना जिले की बिहटा की रहनेवाली एक 24 वर्षीय महिला के जीवन में हाल ही में कुछ ऐसा घटा कि लोग कह उठे सचमुच डॉक्टर धरती के भगवान होते हैं। पटना की हीं एक प्रसूति, बांझपन एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ व नालंदा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, पटना की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ नीलू प्रसाद ने इस महिला की एक जटिल सर्जरी करके उसे माँ होने का सुख प्रदान किया। यह उस महिला का पहला बच्चा है। दरअसल, इस महिला की बच्चादानी जन्म से ही अद्र्धविकसित थी। बच्चादानी का एक ही भाग विकसित हो सका था। कुदरत का चमत्कार देखिए कि इस महिला ने अपनी अविकसित बच्चादानी होने के बावजूद गर्भधारण किया और डॉ. नीलू प्रसाद के चिकित्सकिय कौशल की बदौलत शिशु को सुरक्षित जन्म भी दिया।
जांच करायी तो कई विसंगतियाँ सामने आयीं:
गर्भावस्था के दौरान उक्त महिला ने डॉ नीलू प्रसाद से अपनी जांच करायी तो कई विसंगतियाँ सामने आयी थीं। शिशु गर्भ में उल्टा दिखा। महिला के अद्र्धविकसित गर्भ की वजह से बच्चा लगभग फिक्स हो गया था। गर्भ में वह मूवमेंट नहीं कर पा रहा था। उसका विकास नहीं हो पा रहा था। शिशु गर्भ में लैट्रिन भी खा लिया था जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई थी । डॉ नीलू के मुताबिक जन्म के बाद शिशु का एपीगोर स्कोर कम था। लेकिन डॉ नीलू प्रसाद ने अपनी चिकित्सकीय कौशल व अनुभव के सहारे इस महिला का सफल प्रसव कराया। उन्होंने यह अनोखी उपलब्धि आस्था लोक हॉस्पिटल एवं आईवीएफ सेन्टर, कंकरबाग़ में हासिल की है । डॉ प्रसाद के मुताबिक शिशु स्वस्थ है । उसका वजन करीब 1800 ग्राम है। डॉ नीलू प्रसाद की मानें तो कोई पाँच से दस हजार प्रसव में एस एक मामला ऐसा आता है। अद्र्ध विकसित बच्चादानी होने से बच्चे के गर्भ में ठहरने की समस्या होती है। बच्चा ठहर भी गया तो उसका विकास नहीं होता है। बच्चेदानी का पानी सूख जाता है जिससे बच्चे का गर्भ में कोई मूवमेंट नहीं हो पाता है। जन्म के बाद शिशु में क्लबफूट व रीढ़ की हड्डी की समस्या भी हो जाती है।