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शेखर सेन ने नाट्य चित्रण से कलाप्रेमियों को कभी हंसाया तो कभी रुलाया : आर.के.सिन्हा

पटना,(संवाददाता):  देश विदेश में कबीर तुलसीदास और विवेकानंद, जैसे नाटकों को पेश करने वाले पदमश्री शेखर सेन एकल अभिनीत संगीत नाटक के लिए ख्याति प्राप्त गीतकार, संगीतकार, गायक व अभिनेता है. युगपुरुष नाट्योत्सव के पहले दिन पद्मश्री शेखर सेन राजधानी पटना के रवीन्द्र भवन में कबीर की प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि ‘मेरा मकसद थिएटर को जिंदा रखना है, जो मैं करने की कोशिश कर रहा हूं। शेखर सेन ने बताया कि कबीर की जीवनी पर आधारित 78 किताबें पढ़ने के बाद उन्होंने कबीर नाटक को लिखा। इसके बाद उन्होंने 1999 में पहली बार कबीर नाटक का मंचन किया था। इसके बाद से अब तक वह इसे 460 बार से अधिक मंचन कर चुके हैं। कबीर, तुलसी, सूरदास जैसे नाटक करके मैं खुद को भी खुशनसीब मानता हूं कि क्योंकि इससे मुझे संतों के किरदार में परकाया प्रवेश करने का मौका मिलता है। पद्मश्री संगीतकार, गायक और अभिनेता शेखर सेन ने शुक्रवार को रवींद्र भवन में कबीर की जीवनी पर एकल  नाट्य की प्रस्तुति से कलाप्रेमियों को भावविभोर कर दिया। शेखर सेन ने स्वयं को कबीर के रूप में प्रस्तुत करते हुए कबीर के बचपन से लेकर मृत्यु तक की संपूर्ण जीवनी को नाटक में दिखाया। उन्होंने संत कबीर की जीवनी को गाकर और भावपूर्ण अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कबीर की वाणी को सरल अंदाज में पेश करते हुए कहा 'जो आया है, वह जाएगा, यही सच है।' 'जब तक संसार में सच है, तब तक कबीर जिंदा हैं' बिहार आर्ट थियेटर के अध्यक्ष आर के सिन्हा के आयोजन ‘युगपुरुष नाट्योत्सव’ के पहले दिन के आयोजन में शेखर सेन ने कबीर की संपूर्ण जीवनी को नाटक के जरिए दिल में उतारने का बेहतरीन प्रयास किया। कबीर के 45 दोहों, रमैनियों व भजनों को उनकी जीवनी के अनुरूप रागाश्रित स्वर देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। शेखर सेन ने नाट्य चित्रण से कलाप्रेमियों को कभी हंसाया तो कभी रुलाया। जब दोहे को मनभावन स्वर में पिरोकर गाते तो सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता था। ‘दु:ख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोई' की प्रस्तुति का हर कोई कायल हुआ। उनके नाटकों की भाषा संगीत ही होती है इस पर उन्होंने कहा कि संगीत के बिना अभिनय अधूरा है। इसलिए हर नाटक में संगीत का इस्तेमाल करता हूं। हां, एक बात जरूर है कि नाटक में संगीत का इस्तेमाल करते समय इस बात का ध्यान रखता हूं कि संगीत न भावहीन हो और न ही नीरस। 

नाट्य कार्यक्रम का उद्घाटन  आर के सिन्हा जी द्वारा किया गया। हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ, श्री शंभू शरण सिन्हा, मोहन जी, अभिजीत कश्यप, ज्ञान मोहन जी  प्रमुख रूप से उपस्थित रहकर पूरा नाट्य देखा।  श्री सिन्हा ने इस अवसर पर कहा कि यह हम सबके लिए सौभाग्य की बात है श्री शेखर दा अभिनीत नाटकों को देखने का मौका पटना वासियों को मिल रहा है।उन्होंने सभी से आग्रह किया है यह काफी खास पल है अत वे इस तीन दिवसीय नाट्य को देखने अपने परिवार के साथ जरूर देखने आए । उद्घाटन कार्यक्रम का संचालन कुमार अनुपम ने किया।पहले दिन नाटक को देखने  पटना के कई -साहित्यकार, रंगकर्मी और बड़ी संख्या में कलाप्रेमी मौजूद थे।

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